यशस्वी ने अपना सपना अपने पिता भूपेंद्र जायसवाल से साझा किया। वहीं परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि बेटे को क्रिकेटर बना पाते। बेटे ने मुंबई में रहने वाले एक रिश्तेदार के घर भेजने की जिद की। पेंट व्यवसायी पिता ने उन्हें रोका नहीं और मुंबई के वरली इलाके में रहने वाले रिश्तेदार के यहां भेज दिया। इसके बाद यशस्वी ने अपने दमपर ये सफर तय किया।
यशस्वी बताते हैं कि मुंबई में रिश्तेदार के यहां इतनी जगह नहीं थी कि वह गुजारा हो सके, ऐसे में कालबादेवी इलाके में स्थित एक डेयरी में सोने के लिए जगह मिल गई लेकिन उसके बदले मुझे वहां काम भी करना था। लेकिन ये आइडिया उतना करागर साबित नहीं हुआ क्योंकि दिनभर क्रिकेट का अभ्यास करने के बाद वह शाम को सो जाते। ऐसे में उन्हें अपनी व्यवस्था कहीं और करनी पड़ी।
गोरखपुर के इस मंदिर में पहुंचे अंडर-19 क्रिकेट विश्वकप के हीरो यशस्वी